Wednesday 1 August 2018

भारत भारतीयों के लिए

भारतीय नागरिकता की निश्चित राष्टीय पालिसी होनी चाहिए और कड़ाई से उसका पालन होना चाहिए। सच तो यह है कि आज तक हमारे देश में माइग्रेंनटस के लिए कोई भी कोई प्रकिया नहीं है। जो भारतीय सीमा में घुसते रहे हैं उनको किन नियमों के अनुसार आने दिया गया और फिर अपने अपने वोट बैंक के लिए बसाते रहे, उनका वोटर कार्ड, राशन कार्ड और अब यहां तक आधार भी बनाते रहे।
जब इस समस्या से आसाम वासी प्रभावित होने लगे,उनकी संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत को खतरा हुआ, उनके प्राकृतिक जन संसाधनों पर डाका पड़ना शुरू हो गया, तब मजबूर होकर 6 साल आसाम के नागरिकों ने आंदोलन किया, तब जाकर 1985 में राजीव गांधी की सरकार को बाध्य होना पड़ा कि असमियों की मांगों के आगे और तब उन्होंने घोषणा की  राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बनाने की। लेकिन इसके आगे प्रकिया शुरू न हो पाई, क्योंकि कांग्रेस ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया। आज कांग्रेसी यह तो कह रहे हैं कि इसकी शुरुआत हमने की थी, पर अब जब सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा और इसके निर्देश पर इन तथाकथित विदेशी बंगलादेशियो और रोहिंग्यास को चिन्हित किया और रजिस्टर से बाहर किया,तब कांग्रेस समेत इन विरोधियों को अपने अस्तित्व का खतरा मंडराता हुआ दिखने लगा,जो आजकल खुलेआम देखा जा सकता है।
अभी तो यह ड्राफ्ट है, कोई अंतिम सूची नहीं है, सरकार ने साफ किया है कि कोई भी भारतीय होने का दावा दे सकता है और सबूत देता है तो उसका नाम जोड़ा जा सकता है।
आसाम में तो लगभग अभी लगभग 40लाख ऐसे लोगों को राष्ट्रीय रजिस्टर से दूर किया गया है, पर एक अनुमान के अनुसार पं बंगाल में‌ तो यह संख्या एक करोड़ से ऊपर है। जम्मू के आसपास भी यह महत्वपूर्ण संख्या हो सकती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान,और यहां तक राजधानी दिल्ली में भी ऐसे अवैध रूप से रहे इन विदेशियों की है जो कि देश की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा और अर्थव्यवस्था पर बोझ बने हुए हैं। इसीलिये इस विषय पर सरकार को राष्ट्रीय मुद्दा समझ कर युद्ध स्तर पर ऐसे अवैध रूप से रह रहे लोगों को चिन्हित कर आगे कार्रवाई करनी चाहिए।

भारतीय पासपोर्ट सभी के लिए स्वतंत्र नहीं होना चाहिए। जब हम भारतीय नागरिकता का सम्मान करेंगे तभी दुनिया इसका सम्मान करेगी।
#भारतभारतीयोंकेलिये